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फिर वही गलती… पीएम मोदी की मां का अपमान कर विपक्ष ने सियासी कब्र खोद ली! TODAY TOP NEWS


बिहार की धरती पर इंडिया अलायंस के नेताओं ने एक बार फिर अपनी राजनीति का कफन खुद ओढ़ लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां का नाम लेकर अपशब्द कहना… यह वही गलती है, जो विपक्ष बार-बार करता है और हर बार खुद को ही जख्‍मी कर लेता है. सवाल सिर्फ इतना क‍ि क्या राजनीति का स्‍तर इतना गिर जाएगा कि मां को भी गालियों में घसीटा जाएगा? बिहार के सपूत और देश के पहले राष्‍ट्रपत‍ि डॉ. राजेंद्र प्रसाद अक्‍सर कहते थे- ‘मां के चरणों में ही स्वर्ग है’. आज उन्‍हीं की धरती पर एक मां के ल‍िए अपशब्‍द गूंजे, यह शायद ही क‍िसी बिहारी को पसंद आएगा. चुनाव नतीजों में यह गुस्‍सा नजर आए तो हैरान नहीं होना चाह‍िए…

गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष की इस हरकत को लोकतंत्र के लिए कलंक बताया. उन्होंने कहा, यह न केवल निंदनीय है बल्कि हमारे लोकतंत्र को भी कलंकित करने वाला है. राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की राजनीति अपने निम्न स्तर पर आ पहुंची है. उनको यह बर्दाश्त नहीं हो पा रहा कि कैसे एक गरीब मां का बेटा बीते 11 वर्षों से प्रधानमंत्री पद पर बैठा हुआ है और अपने नेतृत्व में देश को निरंतर आगे ले जा रहा है. कांग्रेस ने सारी मर्यादा, सारी सीमाएं लांघ दी हैं. यह हर मां का, हर बेटे का अपमान है, जिसके लिए 140 करोड़ देशवासी उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे. अमित शाह का संदेश साफ था, यह लड़ाई सिर्फ मोदी की नहीं, यह हर भारतीय मां के सम्मान की लड़ाई है.

ललन सिंह ने विपक्ष को आईना दिखाया

बिहार में बीजेपी की सहयोगी जेडीयू के नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन (ललन) सिंह ने भी विपक्ष को आईना द‍िखाया. उन्‍होंने कहा, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यात्रा में जिस तरह की भाषा और गालियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह उनकी कुंठा को दिखाता है. कौन सा राज बिहार में लाना चाहते हैं? 1990 से 2005 तक यही जंगलराज था. वही राज लाना चाहते हैं? प्रधानमंत्री को गाली देने का क्या मतलब है? इनको लग रहा है कि ये हारने वाले हैं इसलिए गाली-गलौज पर उतर आए हैं. लेकिन राहुल गांधी को शायद पता नहीं है कि बिहार के लोग इस तरह की भाषा को कभी पसंद नहीं करते.

जब-जब मोदी पर निजी हमले हुए, भाजपा और मजबूत हुई

भारतीय राजनीति में इतिहास गवाह है कि हर निजी हमले ने नरेंद्र मोदी को और मजबूत किया है. लोगों की सहानुभूत‍ि ऐसी मिली है क‍ि वे और मजबूत होकर निकले हैं. हर बार विपक्ष हाथ मलता रह जाता है. यकीन न हो तो इन उदाहरणों को देख लीजिए…

2014: ‘चायवाला ताना’ और पीएम की कुर्सी

2014 लोकसभा चुनाव से ऐन पहले विपक्ष के कई बड़े नेताओं ने नरेंद्र मोदी को ‘चायवाला’ कहकर नीचा दिखाने की कोशिश की. उनका मकसद था मोदी की पृष्ठभूमि पर तंज कसना. लेकिन यही ताना आम जनता के दिल में उतर गया. लोगों ने कहा, हां, हम उसी चायवाले को प्रधानमंत्री बनाएंगे. यह अपमान भाजपा के लिए करिश्माई सहानुभूति लहर लेकर आया और पहली बार पार्टी ने अपने दम पर 282 सीटें जीत लीं. यानी चायवाला कहकर विपक्ष ने खुद मोदी को जनता का प्रधानमंत्री बना दिया.

2017-18: ‘नीच’ टिप्पणी और 2019 की ऐतिहासिक जीत

गुजरात चुनाव के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने मोदी को ‘नीच’ कहा. इस टिप्पणी ने पूरे देश में गुस्सा पैदा कर दिया. भाजपा ने इसे जनता के सामने ‘अहंकारी राजनीति’ का चेहरा बनाकर पेश किया. नतीजा यह हुआ कि मोदी को जनता का बेटा मानने वालों की संख्या और बढ़ गई. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 303 सीटें जीतकर और बड़ी जीत दर्ज की. यानी एक गाली ने मोदी की छवि को गरीबों और आम जनता का हमदर्द और मजबूत कर दिया.

2024: निजी हमले और भाजपा की सहानुभूति लहर

2024 के आम चुनाव में विपक्ष ने मोदी पर जातिगत ताने, निजी टिप्पणियां और यहां तक कि उनके परिवार पर भी हमले किए. लेकिन जनता ने इसे मोदी के खिलाफ नहीं, बल्कि अपने आत्मसम्मान के खिलाफ माना. भाजपा ने हर रैली में इस मुद्दे को उठाया और सहानुभूति की लहर को वोट में बदल दिया. परिणाम भाजपा तीसरी बार सत्ता में लौटी.

यानी हर बार जब विपक्ष ने निजी हमला किया, जनता ने मोदी को और बड़ा जनादेश दिया. अपमान, भाजपा की सबसे बड़ी ताकत बन गया. अब एक बार फिर, विपक्ष ने वही गलती दुहराई है- इस बार निशाना मोदी की मां बनीं. नतीजा क्‍या होगा, यह अंदाजा लगाना मुश्क‍िल है.

बिहार की गलियों में गूंज रहा गुस्सा
चलिए बिहार के गांवों और कस्बों में चलते हैं. चौपालों पर, हाट-बाजारों में, चाय की दुकानों पर, हर जगह एक ही चर्चा है. मरी हुई मां का अपमान कोई कैसे कर सकता है. लोग इसे बिहार का अपमान मान रहे हैं. सोशल मीडिया में लोग सवाल पूछ रहे हैं, विपक्षी नेताओं पर तंज कस रहे हैं- कह रहे क‍ि तुम्हें शर्म भी नहीं आती? क्या यही है तुम्हारी राजनीति? क्या यही है तुम्हारा संस्कार?

बिहार चुनाव से पहले आत्मघाती गलती
राहुल गांधी, तेजस्‍वी यादव और इंडिया अलायंस के उनके साथी सोचते होंगे क‍ि वे मोदी पर वार कर रहे हैं. लेकिन हकीकत यह है कि उन्होंने अपनी ही पीठ पर चुनावी छुरा घोंपा है. मां का अपमान कर उन्‍होंने मोदी को कमजोर नहीं किया, बल्कि जनता की सहानुभूति उनके पक्ष में कर दी. उन्‍हें शायद अंदाजा नहीं क‍ि यह वही बिहार है जिसने लालू-राबड़ी के जंगलराज को नकारकर विकास की राजनीति को चुना. यहां लोग गाली-गलौज नहीं, काम और ईमान चाहते हैं. चुनाव पास हैं. विपक्ष ने मां के अपमान का मुद्दा भाजपा और एनडीए की झोली में डाल दिया है. अब एनडीए हर सभा, हर रैली में यही सवाल पूछेगा- जवाब देना मुश्क‍िल हो जाएगा.



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