Digvijay Diwas 2025: हर साल 11 सितंबर के दिन दिग्विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिवस स्वामी विवेकानंद के 11 सितंबर 1893 को शिकागो की विश्व धर्म संसद में उनके ऐतिहासिक भाषण की स्मृति में मनाया जाता है. लेकिन इस महान उपलब्धि के पीछे कई कठिनाइयों और प्रेरक घटनाओं की कहानी है. चलिए जानते हैं उस घटना के बारे में जब एक गरीब औरत ने खिलाई थी यह चीज.
महिला ने खिलाई रोटी
बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद भारत के महान आध्यात्मिक गुरु एक नगर में भ्रमण के लिए पहुंचे थे. उस समय वे साधु वेश में थे और अपनी यात्रा में देश-विदेश की धरती पर भारतीय संस्कृति और वेदांत का प्रचार कर रहे थे. जब लोगों को उनके आगमन की सूचना मिली तो उनसे मिलने के लिए उमड़ पड़े. सब एक से बढ़कर एक उपहरा लेकर पहुंचे थे. तभी एक बूढ़ी औरत धीरे-धीरे चलती हुई स्वामी जी के पास आती है और बोलती है कि महाराज मै बहुत गरीब हूं आपके लिए उपहार तो नहीं ला पाई, मैं खाना खा रही थी तो कुछ रोटियां आपके लिए लाई हूं. अगर आप इस गरीब की रोटियां स्वीकार करें तो मुझे खुशी होगी.
स्वामी जी के आंखों में आ गए आंसू
आसपास खड़े लोग उस औरत की तरफ बुरी नजर से देखते लगे लेकिन स्वामी जी की आंखों में आंसू आ गए, उन्होंने महिला से रोटी ली और वहीं खाने लगे. वहां बैठे लोगों को ये बात कुछ रास नहीं आई. लोगों ने पूछा स्वामी जी आपने इतने कीमती उपहार अलग रख दिए और इस गरीब महिला की रोटी का स्वाद ले रहे हैं. ऐसा क्यों?
क्या बोले विवेकानंद
तब स्वामी विवेकानंद जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि आप लोगों ने अपने धन दौलत से कुछ हिस्सा निकालकर मुझे दिया है. लेकिन इस गरीब महिला के पास इस रोटी के सिवाय कुछ नहीं है फिर भी इसने मुझे अपने मुंह का निवाला दिया है इससे बड़ा त्याग और क्या हो सकता है. एक मां भूखे रहकर अपने बच्चों को खाना खिलाती है. ये रोटी नहीं एक मां की ममता है जिसे मैं नमन करता हूं. ऐसा सुनकर वहां उपस्थित सभी लोग निशब्द रह गए.
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