लेकिन राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव एकल संक्रमणीय मत (सिंगल ट्रांसफेरेबल वोट) के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार होते हैं. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अंतर्गत एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से प्रत्येक मतदाता उतनी ही वरीयताएं अंकित कर सकता है, जितने उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे होते हैं. उम्मीदवारों के लिए ये प्राथमिकताएं मतदाता द्वारा मतपत्र के स्तंभ 2 में दिए गए स्थान में उम्मीदवारों के नामों के सामने वरीयता क्रम में 1, 2, 3, 4, 5 इत्यादि अंक दर्ज करके अंकित की जाती हैं.
अधिकारियों ने बताया कि ईवीएम इस मतदान प्रणाली को पंजीकृत करने के लिए डिज़ाइन नहीं की गई हैं. ईवीएम मत संग्रहक होती हैं और आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत मशीन को वरीयता के आधार पर मतों की गणना करनी होगी और इसके लिए एक बिलकुल अलग तकनीक की आवश्यकता पड़ेगी. दूसरे शब्दों में, एक अलग प्रकार की ईवीएम की आवश्यकता होगी.
वर्ष 1979 में एक प्रोटोटाइप विकसित किया गया, जिसे 6 अगस्त 1980 को निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के समक्ष प्रदर्शित किया गया. जब ईवीएम लाने पर व्यापक सहमति बन गई तो सार्वजनिक क्षेत्र के एक अन्य उपक्रम, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बेंगलुरु को ईवीएम के निर्माण के लिए ईसीआईएल के साथ सहयोजित किया गया.
ईवीएम के प्रयोग पर आम सहमति 1998 में ही बन सकी और मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा दिल्ली के 25 विधानसभा क्षेत्रों में इसका उपयोग किया गया. मई 2001 में तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनावों में सभी विधानसभा क्षेत्रों में ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था. तब से, निर्वाचन आयोग हर राज्य के चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल करता रहा है.
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