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पंजाब में हमेशा क्यों बनते हैं बाढ़ के हालात, नदियों के कारण ऐसा या कुछ और वजह TODAY TOP NEWS

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Punjab Flood: मानसून के मौसम में आमतौर पर भारी बारिश होती है. लेकिन इस हफ्ते उत्तर भारत में हुई भारी बारिश ने पंजाब में भारी तबाही मचाई है. जिसके चलते अचानक बाढ़ आ गई और उफनती नदियां अपने किनारों को तोड़कर खेतों और गांवों में भर गईं. पंजाब इस समय हाल की सबसे भयंकर बाढ़ से जूझ रहा है. राज्य सरकार ने सभी 23 जिलों को बाढ़ प्रभावित घोषित कर दिया है. शुक्रवार के आंकड़ों के अनुसार 1,902 गांव जलमग्न हो गए हैं, 3.8 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं और 11.7 लाख हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि नष्ट हो गई है. कम से कम 43 लोग मारे गए हैं. लाखों लोग बिजली और साफ पानी से वंचित हैं. कई गांवों में सड़ते हुए जानवरों के शवों की दुर्गंध फैली हुई है.

बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित उत्तरी जिला गुरदासपुर है. जहां 329 गांव और 1.45 लाख लोग प्रभावित हुए हैं तथा 40,000 हेक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न हो गई है. प्रांतीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, पंजाब (पाकिस्तान) द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में भी बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है, जहां कम से कम 43 लोगों की मौत हो गई है और 9 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो गए हैं. यह बाढ़ पूरी तरह से असामान्य नहीं है. पांच नदियों की धरती पंजाब का भूगोल इस क्षेत्र को स्वाभाविक रूप से फ्लड प्रोन बनाता है. हालांकि, मानवीय कारक भी इसमें भूमिका निभाते हैं.

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नदियां बनाती हैं पंजाब को उपजाऊ
तीन बारहमासी नदियां – रावी, ब्यास और सतलुज – पंजाब राज्य से होकर बहती हैं. रावी पठानकोट और गुरदासपुर से होकर गुजरती है. ब्यास होशियारपुर, गुरदासपुर, कपूरथला, अमृतसर, तरनतारन और हरिके से होकर गुजरती है. सतलुज नंगल, रोपड़, नवांशहर, जालंधर , लुधियाना , मोगा, फिरोजपुर और तरनतारन से होकर गुजरती है. मौसमी नदी घग्गर, छोटी सहायक नदियां और पहाड़ी धाराएं भी राज्य से होकर गुजरती हैं. पहाड़ी धाराओं को स्थानीय रूप से  चोई कहा जाता है.  ये नदियां और इनके द्वारा बहाकर लायी गयी जलोढ़ मिट्टी पंजाब को धरती के सबसे उपजाऊ इलाकों में से एक बनाती है. सदियों से बाढ़ के मैदानों में खेती फलती-फूलती रही है. आज, पंजाब जिसे अक्सर भारत का ‘अन्न का कटोरा’ कहा जाता है देश के लगभग 20 फीसदी गेहूं और 12 फीसदी चावल का उत्पादन करता है. जबकि इसका क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का केवल 1.5 फीसदी है.

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इसकी कीमत भी चुकाता है ये राज्य
पंजाब को हालांकि इस उर्वरता की एक कीमत चुकानी पड़ती है. पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू -कश्मीर के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों में होने वाली बारिश के कारण मानसून के दौरान पंजाब की नदियां उफान पर आ जाती हैं. हालांकि धुस्सी बांधों (मिट्टी के तटबंधों) की एक विस्तृत व्यवस्था  बाढ़ से बचाव की पहली पंक्ति बनाती है, लेकिन भारी बारिश अक्सर इन पर पानी फेर देती है. इस साल ऐसा ही हुआ है और अतीत में भी कई बार ऐसा हुआ है. विशेष रूप से 1955, 1988, 1993, 2019 और 2023 में. 10 अगस्त से शुरू हुई हिमाचल प्रदेश में असाधारण रूप से भारी बारिश के कारण व्यास नदी उफान पर आ गयी. 50,000-55,000 क्यूसेक पानी का प्रवाह नदी की क्षमता से ज्यादा हो गया. कपूरथला, तरनतारन, फिरोजपुर, फाजिल्का और होशियारपुर के गांव और खेत पानी में डूब गए.

लगातार बारिश ने बिगाड़े हालात
अगस्त के मध्य से अंत तक हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में हुई बारिश के कारण रावी नदी भी उफान पर थी. 26 अगस्त को पठानकोट के पास माधोपुर बैराज के दो गेट टूट गए और रावी नदी में पानी का बहाव दो लाख क्यूसेक से ज्यादा हो गया, जिससे पठानकोट, गुरदासपुर और अमृतसर जिलों में भारी बाढ़ आ गई. इस बीच, पंजाब में लगातार बारिश ने हालात और बदतर कर दिए. सतलुज नदी पर बने ज्यादातर तटबंध तो सुरक्षित रहे, लेकिन दक्षिणी पंजाब के मालवा क्षेत्र में भारी बारिश के कारण लुधियाना, जालंधर, रोपड़, नवांशहर और मोगा जिलों में भीषण जलभराव हो गया. भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार शुक्रवार तक पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में इस साल 45 फीसदी से अधिक अतिरिक्त वर्षा (मौसमी सामान्य से अधिक) दर्ज की गयी है.

राज्य में 3 बड़े बांध, जानें इनकी भूमिका
जब भी पंजाब में बाढ़ आती है तो ध्यान तीन बांधों पर जाता है. जो पंजाब की तीन बारहमासी नदियों के ऊपरी भाग में स्थित हैं. ये बांध नीचे की ओर नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. भाखड़ा बांध हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में सतलुज नदी पर और पौंग बांध हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में व्यास नदी पर स्थित है. दोनों बांधों का संचालन भाखड़ा व्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) द्वारा किया जाता है. जो पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है. थीन बांध (आधिकारिक तौर पर रंजीत सागर बांध) जम्मू-कश्मीर और पंजाब की सीमा पर रावी नदी पर स्थित है और इसका संचालन पंजाब राज्य विद्युत निगम लिमिटेड और राज्य के सिंचाई विभाग द्वारा किया जाता है.

ज्यादा बारिश होने पर छोड़ा जाता है पानी
जब अत्यधिक वर्षा से बांधों के जलाशय भर जाते हैं तो पानी को ऊपर जाने से रोकने के लिए पानी छोड़ा जाना चाहिए. क्योंकि जब जलाशय में जल स्तर बांध के शिखर से अधिक हो जाता है तो यह एक संभावित विनाशकारी स्थिति हो सकती है. बीबीएमबी के निदेशक (जल विनियमन) संजीव कुमार ने  इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “बीबीएमबी, जल विज्ञान और मौसम पूर्वानुमानों पर आधारित एक ‘रूल कर्व’ का पालन करता है, लेकिन अत्यधिक वर्षा की घटनाएं बहुत कम गुंजाइश छोड़ती हैं. यदि जलग्रहण क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा होती है और जलाशय अपनी सीमा के करीब पहुंच जाते हैं तो बीबीएमबी को बांध की सुरक्षा बनाए रखने के लिए पानी छोड़ना ही होगा.” रूल कर्व जल प्रवाह की विभिन्न स्थितियों के तहत साल की विभिन्न अवधियों के दौरान बांध के जलाशय में बनाए रखने के लिए लक्षित स्तर होते हैं.

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क्या कहा बीबीएमबी के चेयरमैन ने
भारी बारिश के दौरान नियंत्रित मात्रा में पानी छोड़ने से भी निचले इलाकों में बाढ़ आ सकती है. इस साल भी यही हुआ. बीबीएमबी के चेयरमैन मनोज त्रिपाठी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “इस साल (पौंग बांध पर) पानी का प्रवाह 2023 (पिछली बार पंजाब में आई बाढ़) से लगभग 20 फीसदी ज्यादा है और इतना अभूतपूर्व प्रवाह पहले कभी दर्ज नहीं किया गया. लेकिन हमने इसे बहुत अच्छी तरह से प्रबंधित किया है.” त्रिपाठी ने बताया कि भाखड़ा बांध में भी जल प्रवाह बहुत अधिक है, हालांकि यह पूरी तरह से अभूतपूर्व नहीं है. हालांकि पंजाब को लंबे समय से लगता रहा है कि बीबीएमबी उसके हित में काम नहीं करता. राज्य के अधिकारियों का कहना है कि बोर्ड जुलाई और अगस्त में जलाशयों का स्तर इतना ऊंचा रखता है कि सर्दियों में सिंचाई और बिजली के लिए पानी उपलब्ध हो सके. जिससे अगस्त और सितंबर में अचानक बारिश होने पर ज्यादा पानी नहीं बचता. इसके अलावा अधिकारियों का कहना है कि बीबीएमबी अक्सर समय पर चेतावनी नहीं देता, जिससे अचानक पानी छोड़े जाने से अक्सर राज्य के निचले इलाकों के अधिकारी असमंजस में पड़ जाते हैं.

पंजाब की नहीं सुनता बीबीएमबी
बीबीएमबी के साथ पंजाब की समस्याओं की जड़ में उसका संविधान है. राज्य को लगता है कि केंद्र-नियंत्रित बोर्ड में उसकी भूमिका बहुत कम है, जिसका मुख्य कार्य सिंचाई और बिजली उत्पादन करना है बाढ़ प्रबंधन नहीं. केंद्र द्वारा 2022 में बीबीएमबी नियमों में संशोधन करने के फैसले ने जो अब केवल पंजाब और हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे भारत के अधिकारियों को बोर्ड में शीर्ष पदों पर आसीन होने की अनुमति देता है पंजाब की चिंताओं को और बढ़ा दिया है. इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में   पंजाब के जल संसाधन मंत्री बरिंदर कुमार गोयल ने कहा कि बीबीएमबी अपने बांधों में पानी आखिरी क्षण तक रोककर रखता है और फिर अचानक छोड़ देता है. उन्होंने कहा, “यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि उन्हें (केंद्र को) पंजाब के लोगों की कोई परवाह नहीं है.”

सीमा पार भी है तबाही का आलम
यह संकट सिर्फ भारत का ही नहीं है. सीमा पार पाकिस्तान के कृषि-प्रधान प्रांत पंजाब में भी बाढ़ से हुई तबाही और भी भयावह रही है. जहां लगभग 20 लाख लोगों को बेघर होना पड़ा है और लगभग 4,000 गांव बाढ़ के पानी में डूब गए हैं. दोनों देश कई प्रमुख नदियों को साझा करते हैं और भारत सरकार द्वारा नदी के ऊपरी हिस्से में स्थित कई भारी मात्रा में भरे बांधों से पानी छोड़ने के निर्णय के कारण सीमा के दोनों ओर पंजाब के भौगोलिक क्षेत्र में बाढ़ आ गई है. जिसके कारण पाकिस्तानी अधिकारी इस आपदा के लिए भारत को दोषी ठहराने का प्रयास कर रहे हैं. भारत की सीमा से होकर पाकिस्तान में जाने वाली रावी नदी के उफान का प्रकोप इतना अधिक था कि शुक्रवार को इसने दोनों परस्पर विरोधी पड़ोसियों के बीच अत्यधिक सैन्यीकृत सीमा बनाने वाली 30 किलोमीटर लंबी लोहे की बाड़ को उखाड़ दिया और भारत के सीमा सुरक्षा बल के जवानों को अपनी दर्जनों अति संवेदनशील चौकियां छोड़ने पर मजबूर कर दिया.



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