नेपाल इस समय गंभीर राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. काठमांडू में बड़े पैमाने पर हुए प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया. प्रदर्शनकारियों ने बालकोट में ओली के निजी आवास में आग लगा दी तथा विभिन्न पूर्व मंत्रियों के आवासों पर हमला किया. नेपाल में सोशल मीडिया पर सरकारी प्रतिबंध के खिलाफ युवाओं ने सोमवार हिंसक विरोध प्रदर्शन किया. इस दौरान पुलिस के बल प्रयोग करने से कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई और 300 से अधिक अन्य घायल हो गए.
साल 2017 से 2020 तक नीदरलैंड में भारत के राजदूत रहे राजमणि और विभिन्न अन्य राजनयिकों ने सुझाव दिया कि भारत को नेपाल में ‘घरेलू हालात को समझना चाहिए’ और स्थिति पर सावधानीपूर्वक नजर रखनी चाहिए. राजामणि ने कहा, ‘मुझे लगता है कि हमें चीजों के सुलझने तक इंतजार करना होगा…(लेकिन) हमें इस पर बहुत सावधानी से नजर रखनी चाहिए, क्योंकि इसका हम पर और नेपाल में हमारे हितों पर बहुत प्रभाव पड़ेगा.’
हालांकि, उन्होंने कहा कि नेपाल में भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए. इस बात पर कि नेपाल में उथल-पुथल ऐसे समय में हो रही है जब भारत-चीन संबंध सुधर रहे हैं, कांत ने कहा, ‘मुझे लगता है कि हमें इन सब बातों को चीन के साथ अपने संबंधों की नजर से नहीं देखना चाहिए.’ राजामणि ने भी उनके विचारों से सहमति जताते हुए कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि चीन यहां कोई कारक है.’
लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘हमारे पड़ोसी देशों में वास्तव में उथल-पुथल मची है.” उन्होंने कहा कि श्रीलंका की जहां तक बात है तो वहां 2022 के विरोध प्रदर्शनों के बाद स्थिरता है, और बांग्लादेश चुनाव की ओर बढ़ रहा है. राजमणि ने कहा ‘म्यांमा अब भी अस्थिर जगह बना हुआ है, लेकिन चुनाव की ओर भी बढ़ रहा है. लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान बैठा है, और पाकिस्तान में भी अनिश्चितताएं हैं. इसलिए, कुल मिलाकर, पड़ोस को देखते हुए हमारे लिए स्थिति चुनौतीपूर्ण है. इस समय हमें अधिक सतर्क और कुशल कूटनीति अपनाने की जरूरत है.”
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