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India China Ties: प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग फिर से बातचीत कर रहे हैं और साझेदारी की बात कर रहे हैं, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि भारत चीन पर कितना भरोसा कर सकता है?

1962 के युद्ध ने साफ कर दिया कि पंचशील चीन के लिए केवल कूटनीतिक औजार था, भरोसे की गारंटी नहीं. युद्ध के बाद से अब तक, चाहे अरुणाचल प्रदेश पर दावा हो या डोकलाम और गलवान जैसी झड़पें, चीन का ट्रैक रिकॉर्ड यह दिखाता है कि उसकी बात और ज़मीन पर की जाने वाली कार्रवाई में भारी फर्क है. गलवान घाटी में 2020 की हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवानों की शहादत ने इस अविश्वास को और गहरा कर दिया.
इतिहास और वर्तमान घटनाएं यही कहती हैं कि चीन के साथ दोस्ती ज़रूरी है, लेकिन आंख मूंदकर भरोसा करना खतरनाक साबित हो सकता है. पंचशील की बातें सुनने में जितनी अच्छी लगती हैं, हकीकत में उतनी ही नाजुक साबित हुई हैं.
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T…और पढ़ें
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