





7 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी
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एक्टर नवीन कस्तूरीया इंजीनियरिंग की दुनिया से आए फिर असिस्टेंट डायरेक्टर बने। उसके बाद एक्टिंग की दुनिया में आए तो अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनकी एक्टिंग का यह प्रभाव है कि आज युवाओं के संघर्ष, उनकी सफलता और सपनों की पहचान बन चुके हैं। टीवीएफ की ‘एस्पिरेंट्स’ के बाद नवीन की चर्चा इन दिनों वेब सीरीज ‘सलाकार’ को लेकर खूब हो रही है।
हाल ही में नवीन ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। इस दौरान एक्टर ने अपने बचपन, पढ़ाई-लिखाई और डायरेक्टर बनने के सपने के बारे में बात की। फिर कैसे फिल्म ‘सुलेमानी कीड़ा’ की वजह से ओटीटी स्टार बनें। इस बारे में दिलचस्प खुलासे किए।
पढ़िए नवीन कस्तूरीया से हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश..

नवीन जी सबसे पहले अपने बचपन के बारे में कुछ बताइए?
मैं जॉइंट फैमिली में पला बढ़ा हूं। मेरे पिताजी नाइजीरिया के एक छोटे से टाउन Otukpo में मैथ के टीचर थे। मेरी पैदाइश वहीं की है। पिता जी वहां 5 साल रहे और जब मैं 10-11 महीने का हुआ तब दिल्ली लाजपत नगर वापस आ गए। दिल्ली के एमपीए कॉलेज से मैंने इंजीनियरिंग की।
पढ़ाई के दौरान के कैसे अनुभव रहे?
स्कूल तक तो बहुत अच्छे मार्क्स आए। मम्मी भी टीचर है। स्कूल में मम्मी-पापा दोनों के तरफ से प्रेशर मिलता था। इस लिए स्कूल तक बहुत अच्छी पढ़ाई थी, लेकिन कॉलेज में थोड़ा कम पढ़ाई की। इंजीनियरिंग में तो सिर्फ पासिंग मार्क्स आते थे। पापा का पढ़ाई के प्रति एटीट्यूड अब मेरी एक्टिंग की तैयारी में नजर आता है। वो मेरी स्क्रिप्ट पढ़ते रहते हैं और अच्छे से रिहर्सल करने और लाइंस याद करने की सलाह देते हैं। वो खुद मेरी स्क्रिप्ट पढ़ते हैं।
हाल फिलहाल में पेरेंट्स ने कौन सी स्क्रिप्ट पढ़ी और उनका क्या फीडबैक था?
यह सिलसिला ‘एस्पिरेंट्स’ सीजन वन से शुरू हुआ है। उस समय कोविड का समय था, मैं दिल्ली गया था। तब पापा के साथ कुछ लाइंस की प्रैक्टिस की थी। जब मैं वेब सीरीज ब्रीथ कर रहा था तब पापा के साथ फोन पर लाइंस की प्रैक्टिस कर रहा था। ‘एस्पिरेंट्स सीजन टू’ के एक-एक सीन की रिहर्सल पेरेंट्स के साथ कई बार किया। इसका शूट हमेशा दिल्ली में होता है। पिचर्स 2 के समय पेरेंट्स मुंबई में ही साथ थे। मिथ्या का भी रिहर्सल उनके साथ किया था।

स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद पेरेंट्स का कुछ सुझाव भी होता है?
पेरेंट्स का यही सुझाव होता है कि जो भी काम आ रहा है। उसे मना मत करो। क्योंकि कोई भी डायरेक्टर बहुत ही सोच समझकर अपना प्रोजेक्ट बनाता है।
एक्टिंग की तरफ रुझान कैसे हुआ?
स्कूल के समय फिल्मों का बहुत बड़ा फैन था। ‘आंखे’ और ‘बाजीगर’ तो कई बार देखी है। ‘बाजीगर’ देखकर ऐसा लगा था कि शाहरुख खान ने कितनी अच्छी एक्टिंग की है। कॉलेज में जब बोर होने लगा तब मैंने दिल्ली में थिएटर करने की कोशिश की। मैंने अपना एक नाटक भी बनाया था। इसके अलावा मैंने ‘कौन बनेगा करोड़पति’ का ‘कौन बनेगा सौपति’ बनाया था।
इसमें अमिताभ बच्चन बना था। ‘लगान’ का ‘लोगान’ बनाया। जब जॉब करने लगा तो लगने लगा कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय है। डर भी था कि कैसे शुरुआत करूंगा। पेरेंट्स को समझना बहुत मुश्किल था। उस समय उनसे बहुत डरता था।
मुंबई कब आए और पेरेंट्स को कैसे मनाया?
बहुत झगड़े हुए, लेकिन मैंने पापा को मना लिया। मुंबई मई 2008 इंजीनियरिंग जॉब के साथ आया। मैं मुंबई यह सोचकर आया था कि फिल्में बनाऊंगा, लेकिन शुरुआत कैसे होगी यह पता नहीं था। कंपनी में मुझे मड आईलैंड के होटल रिट्रीट में रुकवाया था। मेरे सीनियर अनुभव नारंग थे। उनसे मेरी दोस्ती हुई और मुझे पता चला कि उनका रूममेट एक्टर है।
मैंने किसी को नहीं बताया कि मुंबई क्या करने आया हूं। एक दिन अनुभव के साथ उनके रूममेट विशाल से मिला। उन्हें देखते ही पहचान गया क्योंकि उन्होंने फिल्म ‘लक्ष्य’ में काम किया था। उनसे काफी जानकारी हासिल की। उन्होंने कई प्रोडक्शन हाउस के नंबर दिए।
पहला ब्रेक कैसे मिला?
महेश भट्ट के ऑफिस विशेष फिल्म्स में गया। उस समय ‘जश्न’ फिल्म की प्लानिंग चल रही थी। वहां मेरी मुलाकात फिल्म के डायरेक्टर हसनैन एस हैदराबादवाला से हुई। मेरा CV देखकर वे काफी प्रभावित हुए, उनको लगा कि बहुत पढ़ा लिखा लड़का है। सच्चाई यही थी कि मैं उस समय अपनी पढ़ाई ही बेच रहा था।
जश्न से मेरी शुरुआत असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर हुई। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान बहुत कुछ सीखने को मिला। इस फिल्म के बाद थोड़ा गैप रहा फिर उसके बाद दिवाकर बनर्जी की फिल्म ‘लव सेक्स और धोखा’ असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम मिला। उनकी फिल्म ‘शंघाई’ में असिस्टेंट के साथ मेरा कैमियो भी था। उसके बाद विज्ञापन फिल्में करने लगा।

इंजीनियरिंग का अच्छा-खासा जॉब छोड़ कर आप असिस्टेंट डायरेक्टर बन गए, कभी आर्थिक दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा?
2008 में आया और 2009 तक बैंक करप्ट हो गया था। पहले जैसी अय्याशी नहीं थी। तब पैसों की बहुत जरूरत थी। मैंने अपनी बहन और पेरेंट्स से भी पैसे लिए है। पापा अंदर से थोड़े दुखी थे। मेरे साथ के लोग अमेरिका में जॉब कर रहे थे। वो यही सोचते थे कि लाइफ स्टाइल और बेहतर हो सकती है।
आपका सपना तो डायरेक्टर बनने का था, फिर पूरी तरह से एक्टिंग में कैसे आए?
‘लव सेक्स और धोखा’ में अमित वी मसुरकर मेकिंग डायरेक्टर थे। मेरी उनके साथ दोस्ती हो गई। मैं अपनी फिल्म बनना चाह रहा था। अमित अपनी फिल्म की तैयारी में थे। हम अक्सर एक दूसरे से आइडियाज डिस्कस करते थे। हम दोनों ने साथ में टेलीविजन के लिए एक शो ‘सच का सामना’ लिखा है।
अमित ने एक सीन लिखा था जिसमें दो राइटर बुक शॉप में हैं। उनका ध्यान बुक्स से ज्यादा लड़कियों पर है। अमित ने बताया कि इस सोच पर एक फिल्म बनाना चाह रहे हैं। जिसमें से एक लड़के का किरदार मुझे निभाने के लिए कहा।
अमित को पता था कि मैं एड का ऑडिशन देता रहता हूं। वह मुझे कहते भी थे कि तुम्हारे अंदर एक्टर वाली क्वालिटी है। वह सीन उन्होंने हम दोनों पर ही लिखा था। राइटर के तौर पर हम दोनों धक्के खा ही रहे थे। यहां से फिल्म ‘सुलेमानी कीड़ा’ का जन्म हुआ।
हालांकि, इस फिल्म को बनाने का उनका एक अलग स्ट्रगल रहा। फिल्म शुरू होने में समय था, लेकिन खुद को हीरो इमैजिन करने लगा था। तभी ‘शंघाई’ में छोटा सा रोल करने का मौका मिल रहा था। अमित के सुझाव पर ‘शंघाई’ में काम किया। हां, आप कह सकते हैं कि ‘सुलेमानी कीड़ा’ की वजह से ही एक्टर बना जो किस्मत से मेरे जिंदगी में आई।

‘सुलेमानी कीड़ा’ को बनने और रिलीज होने में काफी समय लगा। फिर 2015 में टीवीएफ पिचर्स आपके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ?
सुलेमानी कीड़ा की रिलीज का काफी समय तक इंतजार करता रहा। फिल्म पूरी होने के ढाई साल के बाद रिलीज हुई। फिल्म के अच्छे रिव्यूज आए। हमारी फिल्म को 3 स्टार रेटिंग मिली थी। जबकि उसी समय एक बड़ी फिल्म रिलीज हुई थी।
उसे एक स्टार मिले थे। मेरी फिल्म को काफी पसंद किया गया। इससे मेरा हौसला बढ़ गया। इसी फिल्म की वजह से मुझे टीवीएफ पिचर्स में काम करने का मौका मिला। यहीं से ओटीटी पर मेरी शुरुआत हुई।
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